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इन्फोसिस के खिलाफ इतनी बिलबिलाहट क्यों?

पांचजन्य पत्रिका की आवरण कथा में इन्फोसिस पर भड़ास निकाली गई, सिर्फ इसलिए कि आयकर विभाग के पोर्टल की गड़बड़ी समय से दूर क्यों नहीं हो रही है? आयकर विभाग का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से क्या संबंध? पांचजन्य घोषित रूप से संघ की विचारधारा वाला अखबार था, जो अब पत्रिका में तब्दील हो गया है। उस पांचजन्य में से यह आवाज निकली कि इन्फोसिस जो है, वह राष्ट्रद्रोहियों के साथ मिली हुई है, टुकड़े टुकड़े गैंग की मददगार है। विरोध के स्वर तेज होने पर संघ के प्रवक्ता ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि ये लेखक के अपने विचार हैं। संघ का इससे कोई लेना-देना नहीं। क्या पत्रिका में जिसने इस लेख को आवरण कथा के रूप में छापा, जिसने लिखा, उनका संघ की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है?

दरअसल यह स्थिति भयानक होने का संकेत है। देश को कब्जे में कैसे लिया जा सकता है, यह नोटबंदी के बाद से सरकार चलाने वालों को अच्छी तरह समझ में आ गया। प्रोपर्टी और इनकम पर सिर्फ उन्हीं का अधिकार होना चाहिए, जो सरकार के साथ हैं। जो सरकार के साथ नहीं, वे राष्ट्रद्रोही, वामपंथी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, पाकिस्तान समर्थक आदि इत्यादि। पिछले पांच छह वर्षों से यह जो शब्दावली चल रही है और जिस तरह अनेक बुद्धिजीवी बुजुर्गों तक को विचारधारा के आधार पर जेल में डाल दिया गया है, क्या यह भारतीय लोकतंत्र की गरिमा के अनुरूप है?

सभी देख रहे हैं पिछले दो-तीन साल से साजिशाना तरीके से देश के हर वयस्क को मोबाइल फोन में उलझाया गया है। पैसे का लेन-देन तक मोबाइल की बटन से होने लगा है। जिसके पास मोबाइल नहीं, वह मनुष्य नहीं। मोबाइल हाथ में और उसमें भी प्रधानमंत्री व सरकार जो बताए, वे एप धारण करना जरूरी, नहीं तो मनुष्य कहलाने लायक नहीं। सबकुछ ऑनलाइन करो।

दुर्भाग्य से जिस विचारधारा को लेकर संघ प्रेरित मोदी सरकार काम कर रही है, वह देश की स्थिति को लेकर पूरी तरह भ्रमित है। उसके पास सिर्फ एक असुविधाजनक, बल्कि भयानक एजेंडा है। देश की परिस्थितियों की उसे चिंता नहीं है। मोदी सरकार के कार्यकाल में लोगों की करेंसी छीनी गई। अब दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार महंगाई के रथ पर सवार होकर आक्रामक तरीके से देश की संपत्तियां बेचने निकली है।

पांचजन्य का लेख अकस्मात नहीं है। इ्सके पीछे ऐसे कई फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन होंगे, जो अटक रहे होंगे। यह सिर्फ कयास है, जो गलत हो सकता है। लेकिन जब सरकारी संपत्तियों को बेचने का काम चल रहा है, उस समय यदि ऑनलाइन पोर्टल के कारण सौदे अटक जाएं तो इसमें किसका नुकसान होगा? इन्फोसिस एक मानी हुई अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कंपनी है, जो अपने दम पर विकसित हुई है और जिसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। ऐसी गौरव प्राप्त कंपनी को टुकड़े टुकड़े गैंग की मददगार कहकर क्या साबित करने की कोशिश की जा रही है?

वैसे भी सरकार के आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई आदि विभागों का वर्कलोड इन दिनों काफी बढ़ गया है। भाजपा की पूरी राजनीति आयकर अधिकारियों, प्रवर्तन निदेशकों और जांच एजेंसियों के अधिकारियों के कंधे पर आ गई है।

इस समय देश इस स्थिति में पहुंच गया है कि नई पीढ़ी की रचनात्मकता खत्म हो रही है, युवाओं की हालत बिगड़ रही है, शादी शुदा लोगों की जिंदगी तनावग्रस्त है और बुजुर्गों के हालचाल देखने वाला कोई नहीं। एक परी जनसंख्या पर डबल एजेंडे लागू किए जा रहे हैं। जनता दो पाटों के बीच में पिस रही है। एक एजेंडा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का और दूसरा एजेंडा संघ की विचारधारा लागू करने का। इन दोनों एजेंडों के बीच भारतीय लोकतंत्र के एजेंडे पर बात करने वाला कोई है?

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