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हिंदुत्व, भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी

हिंदुत्व के नाम पर इन दिनों विचित्र राजनीतिक वातावरण बना हुआ है। कानून अंग्रेजों के बनाए चल रहे हैं। शिक्षा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था उनकी बनाई हुई है। अंग्रेजों की सरकार चले जाने के बाद भी उन्हीं के कानून चल रहे हैं, जिसकी मार सबसे ज्यादा हिंदुओं पर पड़ती है। भारत सरकार धर्म निरपेक्षता के आधार पर चलती है। जो पार्टी इस समय सरकार चला रही है, वह सरकार के बाहर हिंदुत्व की राजनीति करती है और सरकार के भीतर वह अंग्रेजों के बनाए कानून का हिंदुओं के खिलाफ ही इस्तेमाल करती है। कहा जाता है कि सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम कस रही है।

भ्रष्टाचार एक अमूर्त शब्द है। यह मुख्यतः उन लोगों के लिए माना जाना चाहिए जो सरकार से वेतन प्राप्त करते हुए जनता के लिए काम करते हैं। अगर वे अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी व्यक्ति के साथ पक्षपात करते हुए अतिरिक्त आमदनी के स्रोत बना लेते हैं तो वह भ्रष्टाचार है। लेकिन लोगों को भ्रष्ट घोषित करने, उनसे कर, शुल्क आदि वसूल करने का काम सरकारी अधिकारियों के पास ही होता है, इसलिए वे पाक-साफ होते हैं। वे किसी भी व्यापारी को भ्रष्ट घोषित कर सकते हैं। हिंदुओं में जिस तरह विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न देवताओं की पूजा का चलन है, जैसे ग्राम देवता, कुल देवता, स्थान देवता आदि, वैसे ही व्यापारियों के लिए ये सरकारी अधिकारी देवता होते हैं, जिनकी प्रसन्नता से ही उनका व्यापार कुशलतापूर्वक चल सकता है। इसलिए सरकारी अधिकारी भ्रष्ट नहीं होते। भ्रष्ट हमेशा आम आदमी होता है।

सिर्फ कानून तोड़ने वालों को भ्रष्टाचारी कहना इसलिए गलत है, क्योंकि जब अंग्रेजों की सरकार थी, तब देशभक्त व्यापारी कानून तोड़ते हुए पैसे बचाकर ही स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आर्थिक योगदान देते थे। तब वे भ्रष्टाचारी नहीं होते थे, देशभक्त होते थे। अब सरकार अपनी है लेकिन कानून वही हैं, जो अंग्रेज सरकार बना गए थे, तो वे टूटेंगे ही। अगर किसी को भी अपनी आमदनी में से पचास फीसदी लाभ जबरन सरकार के नाम से निकालना पड़े तो यह तकलीफ देने वाली बात है। टैक्स देने के अलावा भी रिश्वतें अलग बांटनी पड़ती है। ठेले पर खोमचा लगाने वाले से लेकर विशालकाय कंपनियों तक, सभी इसके अभ्यस्त हैं कि उन्हें कितने लोगों को कितना हिस्सा देना है और किस तरह पैसे बचाना है।

अंग्रेज सरकार को मालूम था कि स्वतंत्रता आंदोलन चलाने वालों को व्यापारियों से भरपूर मदद मिल रही है। सरकार को टैक्स की बड़ी राशि भी उन्हीं से मिलती थी। इसलिए अंग्रेज सरकार ने यह सोचकर नए-नए टैक्स लगाए, आर्थिक कानून बनाए कि इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन को मिलने वाले आर्थिक योगदान में कटौती हो सकती है। अंग्रेजों ने भारतीयों को अपनी सरकार में नौकरी दी तो उन पर आयकर भी जमकर लगाया। व्यापारियों के विक्रय कर, व्यवसाय के लिए कर, व्यवसाय की अनुमति के लिए कर, समाजोपयोगी कार्य निजी स्तर पर कर रहे हैं तो सेवा कर, इस तरह के कई कर और शुल्क हैं, जिनका ज्ञान प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ रच दिए गए हैं। विश्वविद्यालयों में अलग विषय चल रहे हैं। करों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अच्छे-भले आदमी की पूरी जिंदगी खप जाने की व्यवस्था बना दी गई है।

हिंदुत्व के आधार पर वोट लेकर राजनीति करते हुए सरकार चलाने वाली पार्टी को पांच साल बाद भी कर व्यवस्था का दुष्चक्र तोड़ने की फुरसत नहीं मिली जिससे कि हिंदू व्यापारियों को कुछ राहत मिले। उलटे ऐसे काम किए गए जिससे कि व्यापारियों का दम निकल जाए और वे वाणिज्य के आधार पर प्रगति करने की जीवटता छोड़कर उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नौकर बन जाएं, जिनके लिए भारत के बाजारों को खाली करवाया जा रहा है। यह स्थिति देश में प्रत्यक्ष देखी जा सकती है। सरकार अच्छी है। मजबूत है तो हिंदू व्यापारियों और कारोबारियों के दम पर ही है। इसके बावजूद हिंदुत्व के नाम पर वोट देने के बाद व्यापारियों का दम फूला हुआ है।

वर्ष 2020 में दशहरा, दीवाली पर सन्नाटा था। अतिरिक्त आमदनी पूरी तरह बंद हो गई। व्यापारियों का तालमेल किसानों से रहता है। किसानों की स्थिति भी छुपी हुई नहीं है। सिर्फ आर्थिक मुसीबतों के कारण किसानों की आत्महत्या की खबरें आए दिनों आती रहती है। खेत में फसल होने के बाद वह लालची मुनाफाखोरों से घिरा होता है और सरकार उचित दामों पर उनकी उपज खरीदने और बेचने की व्यवस्था नहीं करती है। जो अनाज किसान तीस रुपए किलो में बेच देते हैं, वही बाजार में सत्तर अस्सी रुपए किलो तक कीमत में मिलता है। किसान फसल के लिए लिया गया कर्ज नहीं उतार पाते। उसकी मेहनत का फल लगभग लूट लिया जाता है। किसान भी ज्यादातर हिंदू ही हैं।

यह मान लिया कि कांग्रेस में कई बुराइयां पैदा हो गई और वह अब वोट देने लायक पार्टी नहीं रही। उसके अलावा धर्म निरपेक्षता पर चलने वाली दूसरी पार्टियां भी टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरी हुई है और वे सत्ता सौंपने लायक नहीं हैं। ऐसे में लोगों ने भाजपा को ही देखा। वह हिंदुत्व पर आधारित पार्टी भी है और देश का भला तो सभी राजनीतिक पार्टियां चाहती हैं। हिंदुत्व भाजपा की अतिरिक्त विशेषता है। उसकी सरकार रहने से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएं भी खत्म होंगी। वह देशभक्त है, राष्ट्रभक्त है, हिंदू हित चिंतक है, भारत को विश्व गुरु के पद तक पहुंचाने का लक्ष्य है। फिर देश की प्रति व्यक्ति आय कम होने का सिलसिला क्यों शुरू हो गया है? यह विचारणीय प्रश्न है।

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