ऐसा लगता है जैसे पहले कभी कोई बीमारी आई ही नहीं
इस समय फेसबुक पर दो तरह के लोग आपस में भिड़े हुए हैं।
एक तो मोदी भक्त और दूसरे मोदी के विरोधी।
अब यही रह गया है। या तो मोदी का समर्थन करो या विरोध।
विवेक लापता है।
बुद्धि केंद्र सरकार के खजाने में जमा कर दी गई है।
वस्तुस्थिति देखने का साहस कोई नहीं कर रहा।
एक नवागंतुक बीमारी का आतंक इस तरह फैला हुआ है, जैसे इससे पहले कोई बीमारी आई ही नहीं। यह कोई नहीं समझता कि जब भी किसी नई बीमारी का प्रचार होता है, तो कुछ वस्तुओं की मांग बढ़ती है और उसका व्यापार शुरू हो जाता है। नई दवाएं बनती हैं। नए उपकरण बनते हैं।
बीमारी से बचने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता है कि यह करो, वह मत करो। यह सीधे-सीधे मनुष्य की भावनाओं से खिलवाड़ है, जो इस समय जम कर किया जा रहा है।
जनता को बीमारी से बचाने के लिए पैसा इकट्ठा हो रहा है। संदिग्ध बीमारों की तलाश का प्रचार हो रहा है।
सारे अखबार बीमारी की खबरों से भरे हुए हैं। बीमारी को लेकर लोगों में संदेह का वातावरण इस सीमा तक है कि वे आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे हैं।
तमाम जरूरी बातें नेपथ्य में चली गई है। यहां तक अंतिम संस्कार के आवश्यक क्रिया कर्म तक लोग भूल गए हैं। जो मर गया वह मर गया। उसके लिए क्या रोना? हमें तो अभी जीना है। ऐसा सोचने वाले कब तक किस तरह जिएंगे?
– श्रषिकेश राजोरिया
Rishikesh Rajoria post on FB on April 8 at 12:57 PM
लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक