Litreture

Poem: लॉकडाऊन रहेगा याद! – अवनिंद्र आशुतोष

लॉकडाऊन की बातें याद बनकर रह जाएंगी
एक समय के बाद ये कहानियां बन जाएंगी

कभी भी खाना और कभी भी नहाना
कभी भी जगना और कभी सो जाना

कोई हड़बड़ी नहीं सिवा आराम के
कोई भी तनाव नहीं बाज़ारी काम के

ना चिंता किसी के आने की ना कहीं जाने की
इच्छा हो तो पूरी हो जाती थी गाने की

कोरोना ने जाने किस जन्म का बदला लिया
उसने मास्क लगवाकर अपना मन हल्का किया

बीस सेकेंड हाथ धोने का फॉर्मूला दिया डराकर
हमने जग जीत लिया कोरोना को हराकर

ज़िंदगी ठहरी ठहरी सी फिर भी घिसटती रही
रिश्तों की गठरी कई बार चटकती रही

भले हमने सांत्वना देने की भूमिका ओढ़ ली हो
देने लायक होकर भी हथेली जोड़ ली हो

ना नौकरी की टेंशन ना प्रेस कपड़ों की ज़रूरत
किसी भी काम का कोई नहीं मुहूरत

वर्क फ्रॉम होम ने भी अपना दायरा फ़ैलाया
रूबरू किसी से मिलने का हौसला लड़खड़ाया

लॉकडाऊन ने हमें ख़तरे के ज़ोन में बांट दिया
कई बार हमें अपनों ने बेझिझक डांट दिया

ज़िंदगी क्या सिर्फ़ संभलने का नाम रह गया
कोई किसी का नहीं कोई तो ये कह गया

माया और लोभ ने हमें कुकर्मी तक बना दिया
सिर उठाकर शान से नहीं जिया तो क्या जिया

वक़्त है एक सा नहीं रहता नहीं कुछ कहता
बस चलता रहता है अपने ही मूड में रहता

बातें और घटनाएं बीत जाती हैं यादें बनकर
पीढियां बदलती रहती हैं हर दौर में छनकर

पर भूख बेरोजगारी और फंसने पर फसाना क्यों?
हंसने रोने के बीच दिखावेपन का हक़ीक़त क्यों?

बातें हों हर दौर में ऐसी जिसकी ख़ूब चर्चा हो
यादें उभरें ऐसी जिसमें न कोई शिकायती पर्चा हो!

– अवनींद्र आशुतोष

लेखक वरिष्ठ पत्रकार – कवि हैं।

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