Books: हाईवे माफिया : हाईवे अपराध और आतंक का सच
देश भर में हजारों किलोमीटर में पसरे हाईवे और सड़कों पर हर साल सैकड़ों हत्याएं होती है। हजारों करोड़ का माल लूटा जाता है। हाईवे पर सक्रिय माफिया की इन खूनी और दरिंदगी से भरी हरकतों पर कभी हंगामा नहीं होता। कारण बहुत डरावना है।
हाईवे अपराधों में दरअसल किसी अमीर की हत्या नहीं होती, न उससे हफ्तावसूली होती है। ये तो ट्रक ड्राइवर और क्लीनर हैं, जिन्हें हाईवे माफिया मार गिराते हैं। ट्रकों-कंटेनरों से लूटे करोड़ों रुपए का माल काला बाजार में चंद सिक्कों में बेच कर पौ-बारह करते हैं। अमीर कारोबारी और कारपोरेट माल के बीमा की रकम लेकर चुप बैठ जाते हैं। मजलूम ड्राइवरों और क्लीनरों की मौत का मातम मनाने का वक्त किसी के पास नहीं होता।
पेट्रोल, डीजल, घासलेट, नेप्था चोरी, तस्करी से मिलावट तक, दवा-रसायनों-डाई की चोरी से मिलावट तक, लोहे के सरियों से कॉपर ड्रमों की चोरी तक, मोबाइल फोन, सिगरेट, तंबाकू, कपड़ों, प्लास्टिक दानों से भरे ट्रकों – कंटेनरों की लूटपाट तक, न जाने क्या-क्या हरकत नहीं करता सड़कों पर सक्रिय हाईवे माफिया।
देश भर के हाईवे पर दुर्दांत और भयावह माफिया सक्रिय है। खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल और उनके साथी राकेश दानी ने इस किताब में इसकी परत दर परत हर पोल खोली है।
अध्याय
प्राक्कथन: प्राथमिकी
हाईवे माफिया पर पुस्तक लिखना क्यों जरूरी हो चला और कैसे यह किताब आकार लेती चली गई, यही यात्रा संक्षिप्त में बताने की कोशिश की है।
हाईवे क्राईम
हाईवे माफिया हर उस जगह मौजूद है, जहां मोटा माल काटने का मौका मिलता है। ऐसा कौन सा अपराध है, जो यहां नहीं होते। ट्रकों से माल लूटने और बाजार में आधी या उससे भी कम कीमत पर बेच कर मोटी मलाई मारी जाती है। हाईवे माफिया के कामकाज का काला और कच्चा चिट्ठा पेश है।
हाईवे माफिया गिरोह
हाईवे माफिया की एक बात दिलचस्प है कि ये एक जैसा काम नहीं करते। हाईवे क्राईम में विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग गिरोह हैं। हर गिरोह को एक खास अपराध में महारत हासिल है। उनके कार्यप्रणाली देख कोई भी दांतों तले अंगुली दबा लेगा। इन गिरोहों के सरगना से माल ठिकाने वाले डिब्बे या रिसीवरों तक, ऐसा महीन जाल और विशाल तंत्र विकसित हो चुका है, जिसे नेस्तोनाबूद करना संभव नहीं दिखता। हाईवे माफिया और उसके कामकाज की पूरी तफसील।
हाईवे माफिया के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना बड़ी चुनौती है। इसके जाल में फंसे ट्रांसपोर्टर और उद्योगपति-कारोबारी परेशान हैं।
मुश्किल यह है कि सरकार-प्रशासन के लिए इस अपराध पर नियंत्रण प्राथमिकता नहीं है। ये गिरोह कैसे, क्या और कितने अपराध कर रहे हैं, उनकी तह तक पहुंचे तो सैंकड़ों रहस्य खुले।
हाईवे गैंग्स
हाईवे पर अपराध करने वाले कोई एक ही तरह के खिलाड़ी नहीं होते हैं। और भी कई किस्म के गिरोह देश के तमाम हाईवे पर मौजूद हैं। वे कैसे-कैसे कारनामे करते हैं, किस तरह लोगों को लूटते और हत्याएं करते हैं, उन सबके काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा।
हाईवे अपराध का अर्थशास्त्र
हाईवे पर सालाना कितने करोड़ का नुकसान देश लूटपाट के कारण झेलता है, इसका पुख्ता आकड़ा किसी के पास नहीं है। एक मोटा अनुमान है कि हर साल हाईवे माफिया तकरीबन 80 से 90 हजार करोड़ रुपए के माल पर हाथ साफ करता है। इस काले कारोबार में ऊपर से नीचे तक ऐसे गोपनीय संगठन बन चुके हैं कि उन्हें तोड़ना नामुमकिन सा हो गया है। इन गिरोहों द्वारा किस काले कारोबार में कितनी कमाई होती है, उसका फोरेंसिक ऑडिट पेश है।
लूट मॉल
हाईवे माफिया का माल बाजार में आसानी से खपता है, तभी तो हाईवे माफिया काम कर रहा है। यह सच है, पूरा सच। जब तक हाईवे के लुटेरों का माल बिकता रहेगा, यह अपराध जारी रहेगा। हाईवे माफिया पर लगाम लगानी है तो उसकी पहली शर्त यही है कि उनके माल की खपत बाजार में रोकी जाए। यह कोई बड़ी चुनौती नहीं है। बस इतना ही करना है कि हाईवे लुटेरों और डकैतों से माल खरीदने वालों को बचने का मौका न मिले। लुटेरों का सहयोगी बता कर उन्हें भी उतनी ही कड़ी सजा दिलाई जाए।
अंडरवर्ल्ड कनेक्शन
मुंबई अंडरवर्ल्ड का भी हाईवे माफिया में योगदान रहा है। कई गिरोहों के सुपारी हत्यारे और हफ्ताखोर को लुटेरे और डकैत ही रहे हैं। अंडरवर्ल्ड के शातिर खिलाड़ियों की हाईवे माफिया में सफलता-असफलता के किस्से भी हैं।
हाईवे खालिस्तान
अपराध जगत में सिखों के हाईवे लुटेरे गिरोहों को ‘पंजाब गिरोह’ कहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र पुलिस अधिकारियों के बीच इसे ‘सरदार गिरोह’ नाम से पहचाना जाता है। ये दरअसल ‘आतंक के नए पैरोकार’ हैं। खालिस्तान बनाने का सपना अभी मरा नहीं है, यह बात इस गिरोह के सक्रिय होने से पता चलती है। यह गिरोह जो कमाई कर रहा है, उसका बड़ा हिस्सा आतंक के आकाओं के पास विदेश जा रहा है ताकि आतंकी गतिविधियां फिर शुरू की जा सकें। पंजाब या सरदार गिरोह का पर्दाफाश करती जानकारियां आगे पढ़ें।
मरीजों को मौत बांटता: मेडीसिन माफिया
महानगर मुंबई में दवा चोरी करने और मिलावटी दवाएं बाजार में खपाने वाले कई गिरोह हैं। ये दवा चोर गिरोह या मेडीसिन माफिया देश भर में दवाओं के नाम पर मौत का सौदा कर रहे हैं। इनके काम करने के तरीके भले अलग-अलग हों, लेकिन दवा निर्माताओं और रसायन विक्रेताओं के बीच की कड़ी, यानी स्थानीय हाथगाड़ी और टेंपों वालों के जरिए बड़ी तादाद में बाजार में घुसपैठ कर चुके हैं। ये गिरोह बड़े ही संगठित और गोपनीय रूप से मुंबई और आसपास के इलाकों में कामकाज कर रहे हैं।
तेल माफिया के कांड: तेल माफिया का खेल
भारत में तेल माफिया ने कई बड़े हमले और हत्याकांड किए हैं। तेल माफिया ईमानदार अफसरों और पत्रकारों की हत्याएं या हमले पर बुरी तरह घायल करता ही रहता है। सन 2003 में बिहार में नेशनल हाईवे ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट मैनेजर सत्येंद्र दुबे की हत्या तेल माफिया ने की थी। सन 2005 में उत्तरप्रदेश में आईओसी के अधिकारी मंजूनाथ की भी इसी तरह तेल माफिया ने सरेआम हत्या कर दी थी।
हाईवे हॉरर: आदेश खामरा गिरोह
कुछ उसे देश का सबसे बड़ा सीरियल किलर कह रहे हैं, तो कुछ के मुताबिक वह सनकी हत्यारा है। किसी के लिए वह करामाती मास्टरजी है, तो किसी के लिए वह राक्षस। इस हाईवे माफिया सरगना और सीरियल किलर का नाम है – आदेश खामरा।
हाईवे टेरर: अशोक खामरा गैंग
‘हाईवे हॉरर’ आदेश खामरा की गिरफ्तारी के बाद 90 के दशक के ‘हाईवे टेरर’ अशोक कुलावला उर्फ अशोक खामरा की दास्तान एक बार लोगों को डराने लगी। अशोक खामरा को तब देश भर में ‘हाईवे टेरर’ नाम इसलिए मिला था क्योंकि उसने छह दर्जन हत्याएं करना स्वीकार करके सबके होश उड़ा दिए थे। उसके कारनामों का काला चिट्ठा खोला है।
शौकत नजर हुसैन सरकार: अरबपति तेल चोर
फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानियों से मायानगरी मुंबई पटी पड़ी हैं। उद्योग, कारोबार, मनोरंजन, शिक्षा, तकनीक, ज्ञान, विज्ञान, लेखन, पत्रकारिता… किसी भी क्षेत्र की बात करेंगे, तो इनमें लोटा-लंगोटा लेकर आए लोगों के करोड़पति-अरबपति होने की दास्तां सुनाई देंगी। कमोबेश यही हाल मुंबई के अपराध जगत का भी है। फटेहाल गरीब बच्चे इस शहर की चकाचौंध में आते हैं, जल्द और बहुत सारा पैसा कमाने के चक्कर में सरमायादारों के संसार में धंसते चले जाते हैं। ऐसा ही एक नाम शौकत नजर हुसैन सरकार हुआ है। उसकी दास्तान हिंदी मसाला फिल्मों सरीखी है। उसकी रोमांचक जिंदगी, आसमान में आफताब बन कर चमकने और एक दिन गोलियों से बिंधी लाश में तब्दील होने की पूरी कहानी।
खबरी बिन सब सून
मुखबिरों के बिना कोई अपराध हल करना या अपराधियों को पकड़ कर माल या हथियारों की बरामदगी असंभव होता है।
पुलिस अधिकारी भले ही अपनी पीठ थपथपा लें कि मामला उन्होंने हल किया है, सच तो यह है कि अधिकांश मामलों में खबरियों का खेल ही जीत दिलाता है। पुलिस के लिए मुखबिर आंख-कान-नाक ही नहीं दिमाग, हाथ और पैर भी होते हैं।
मुखबिरों की बदौलत सबसे खतरनाक और अनसुलझे अपराधों की तह तक जाने में पुलिस को मदद मिलती है। कई मामलों में खबरियों ने शानदार काम किया है।
कमजोर कानून
अपराधों पर रोकथाम के सिलसिले में सबसे कमजोर कड़ी कोई है तो वह कानून ही है। कानून का इस्तेमाल अपराधियों को रोकने के लिए पुलिस द्वारा ठीक तरह से न करना एक कारण है, दूसरा कारण सबूतों के अभाव या कानूनी दांव-पेंचों में उलझा कर मामले लंबे करते जाने से भी अपराधियों को ही आखिरकार लाभ होता है। कानूनी मसलों पर भी कुछ बातें हो जाएं, तो बेहतर।
हाईवे पर लूट से हत्या तक: दिल दहलाते मंजर
हाईवे पर लूटपाट और डकैतियों का सिलसिला पूरे देश में चल रहा है। कैसे-कैसे खौफनाक कारनामे ये डकैत कर जाते हैं, वह दिल दहलाने वाला मंजर होता है। सैंकड़ों ट्रक चालकों और क्लीनरों (हेल्परों) की जान ये डकैत अब तक ले चुके हैं। लाखों करोड़ रुपए का नुकसान उद्योगों और कारोबार को पहुंचा चुके हैं। इनके कारानामों की जानकारियां तफसील से पेश हैं।
सुझाव व उपाय
सरकार और सरकारी अमला यदि चाहता है कि सड़कों का अंडरवर्ल्ड खत्म हो, तो उसे कुछ बातों पर सख्ती से अमल करना होगा। हालात तो ये बन चले हैं कि हाईवे माफिया अपना काम लगातार किए जा रहा है, उनके खिलाफ कमर कस कर उतरने का इरादा कहीं दिखता नहीं है। जरूरत तो यह है कि हाईवे पुलिस को सक्षम बनाया जाए। कुछ सुझाव और उपाय पर ध्यान दे लेंगे तो हाईवे अपराधों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
हाईवे माफिया की मौज के आंकड़े
हाईवे माफिया द्वारा जो कारनामा देश भर में अंजाम दिया जा रहा है, उसकी छोटी सी झलक इन आंकड़ों से मिल सकती है। ये तो वे आंकड़े हैं, जिनके बारे में पुलिस या अन्य एजंसियों को जानकारी मिली और एनसीआरबी से साझा हुए। ऐसे मामलों की संख्या काफी कम होती है, जो एनसीआरबी के आंकड़े बनने तक की स्थिति में पहुंचते हैं।
शब्द व अर्थ
इस दुनिया के अपनी कुछ खास शब्दावली है। उसके साथ ही कुछ कानूनी शब्द भी होते हैं, जो कई बार लोगों की जानकारी में नहीं होते हैं। इन्हें भी किताब में स्थान दिया है ताकि कोई शक और शुबहा न रहे, जब किताब पढ़ी जा रही हो।
संदर्भ
किताब वैसे तो पूरी तरह अपने अनुभव, शोध और खोजबीन पर आधारित है लेकिन कुछ सामग्री अन्य स्रोत से भी हासिल की है, जिसका संदर्भ सबसे अंत में दिया है।
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