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Mafia Drugs: अश्विन नाईक ने अंडरवर्ल्ड से किनारा किया: नशा व हथियार तस्करी में एएन कंपनी सक्रिय

विवेक अग्रवाल

मुंबई, 16 जुलाई 2001

काली दुनिया में गिरोहों के बीच मची आपसी लड़ाई और पुलिस मुठभेड़ नीति के कारण अश्विन नाईक गिरोह ने अब लगभग खूनी खेल से किनारा कर लिया है। मुंबई अपराध जगत में आज तक बने हुए पाँच गिरोहों में से एक प्रकार से यह गिरोह अब कम हो गया है।

एएन गिरोह के संस्थापक गिरोह सरगना अमर नाईक की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद गिरोह पहले ही काफी परेशानी में चल रहा था, अश्विन के बुरी तरह घायल होकर अस्पताल में पड़े रहने के कारण गिरोह फिर कभी भी सिर नहीं उठा पाया, अब उसकी गिरफ्तारी से भी गिरोह के सदस्य मुश्किल में पड़े हुए हैं। गिरोह से सदस्यों ने किनारा करने में भी कसर नहीं छोड़ी है।

विश्वसनीय सूत्रों के कहना है कि गिरोह का सेनापति कुमार पिल्ले अब चेन्नई में अपना मुख्यालय बना कर स्थापित हो चुका है। वह यहाँ से मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी कर रहा है। आर्थर रोड जेल में बंद अश्विन नाईक अपने ठीक होने और अदालती मसलों के खत्म होने का इंतजार कर रहा बताते हैं लेकिन असल में वह गिरोह का संचालन कर रहा है। उसका गिरोह फिलहाल पठान गिरोहों से अच्छी किस्म की हेरोईन, ब्रााऊन शुगर, मेंड्रेक्स खरीद कर विदेशों में तस्करी कर रहा है।

पुलिस सूत्रों का कहना है कि कुमार ने श्रीलंका के आतंकवादी संगठन लिट्टे से खासे अच्छे संबंध स्थापित कर लिए हैं। वह न केवल उनके लिए हथियारों की तस्करी करता है बल्कि बदले में उनसे मादक पदार्थ लेता है। इस प्रकार लिट्टे व गिरोह को दोहरा फायदा हो रहा है। लिट्टे को बगैर पैसा खर्च किए ही हथियार मिल जाते हैं, उसके एवज में एएन गिरोह को हथियार देने के बदले विश्व बाजार भाव से काफी कम कीमत पर लिट्टे से नशा मिल जाता है। उनको युरोपीय व अमरीकी बाजारों में बेचने से गिरोह को अधिक फायदा होता है। इसके साथ ही साथ गिरोह का सीधे-सीधे पैसा भी नहीं लगता है।

यह भी पता चला है कि एएन गिरोह पहले कभी मुंबई को नशा तस्करी के खेल में ट्रांजिट पाइंट के रूप में इस्तेमाल किया करता था लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसका एक कारण जहाँ पुलिस व कस्टम्स अधिकारियों की सख्ती है, वहीं दाऊद और गवली गिरोह से दुश्मनी भी है। उनको हमेशा इस बात का भय बना रहता है कि विरोधी गिरोह के सदस्य उनके माल की जानकारी खुफिया अथवा जाँच एजंसियों को देकर धरपकड़ करवा सकते हैं।

एएन गिरोह के सदस्य पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमांत से ये नशा खरीदते हैं। यहाँ से पहले माल को बैंकाक भेजा जाता है। बैंकाक एएन गिरोह के लिए नशा तस्करी का मुख्य ट्रांजिट पाइंट बना हुआ है। इसके बाद माल को दक्षिण अफ़्रीका तक पहुँचाते हैं। यह नशा मारीशस, डर्बन, जोहांसबर्ग में पहुँचाया जाता है। यहाँ पर माल की डिलिवरी होती है और युरोपीय बाजार में माल पहुँचाने वाले तस्करों से वहीं पर उनको पैसा हासिल हो जाता है। एएन गिरोह का इस विषय में युरोपीय गिरोहों से समझौता है कि वे माल की सुरक्षित डिलिवरी अफ़्रीका में करेंगें, यहाँ एक बार माल पहुँचते ही उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है, उनको अपने माल की कीमत मिल जानी चाहिए। इसके बाद माल हॉलैंड होकर संयुक्त राज्य अमरीका और युरोपीय बाजारों में पहुँचाया जाता है।

एक सूत्र ने बताया कि अश्विन से गिरोह के लोग काफी नाराज हैं क्योंकि वह किसी को भी पैसे नहीं दे रहा है। उसका कहना है कि हफ्तावसूली, सुपारी हत्याओं और अन्य तरीकों से धन की आमद बंद पड़ी हुई है इसलिए वह किसी को भी पैसे दे पाने में समर्थ नहीं है। इसे लेकर गिरोह में खासा असंतोष छाया हुआ है।

गिरोह के सदस्यों का मानना है कि जैसा कि पूर्व गिरोह सरगना अमर नाईक करता था, ठीक वैसा ही उसका छोटा भाई और वर्तमान गिरोह सरगना अश्विन भी करने लगा है। गिरोह के पास पैसों की कोई कमी नहीं लेकिन अश्विन किसी को पैसा नहीं दे रहा। इससे गिरोह के सदस्यों के सामने कई किस्म के संकट आ खड़े हुए हैं।

यह कहा जा रहा है कि गिरोह के लिए अपने मुखबिरों को सँभालना काफी कठिन हो रहा है। इसके अलावा उन पुलिस और कस्टम्स अधिकारियों की सेवा भी नहीं हो पा रही है जो कि उनके लिए हमेशा काम करते आए हैं या अभी भी कर रहे हैं।

गिरोह के जिन सदस्यों के खिलाफ अदालत में मुकदमे चल रहे हैं, उनकी कानूनी लड़ाई के लिए भी पैसे नहीं मिलने के कारण खासा संकट खड़ा हो गया है। वकीलों ने बगैर पैसे अधिक समय तक काम करते रहने से साफ इंकार कर दिया है। जेलों में बंद गिरोह सदस्यों के लिए खाने, शराब, सिगरेट, सेलूलर फोन, पेजर जैसी सुविधाओं के लिए भी धन की भारी कमी होने से नाराजगी छाई हुई है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक इसका नतीजा यह हुआ है कि गिरोह में फूट पड़ गई है। गिरोह का एक महत्वपूर्ण धड़ा टूट गया है। उस हिस्से ने छोटा शकील के साथ हाथ मिला लिया है। इस समूह में दिनेश मिठबावकर, उस्मान फकीरा, धनंजय शेट्टी, उमेश बने और मालावणकर हैं। दिनेश और उस्मान तो खटाऊ हत्याकांड में जेल की सलाखों के पीछे हैं जबकि बाकी तीनों अपराधी उमेश भंसाली हत्याकांड में गिरफ्तार होकर जेल में पड़े हुए हैं।

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