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आकाश मार्ग से पहुंची ये कैसी राहत है?

निरुक्त भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार, उज्जैन

मुख्यमंत्रीजी से सखेद निवेदन है कि वो मध्य प्रदेश में अपने मातहत मंत्रियों और सरकारी अमले के हवाई सपनों पर तुरंत लगाम लगायें! आपकी तो ये प्रेरणा नहीं हो सकती, तो क्यों फिर ये सब बर्खुरदार कोरोना महामारी से लड़ने के लिए हवाई किले बना रहे हैं? अस्पतालों के हवाई दौरे! हवाई बातें! हवा-हवाई घोषणाएं!

हद तो तब हो गई जब मालूम पड़ा कि अब हवा के रास्ते रेमडेसीविर इंजेक्शन मंगाए जा रहे हैं! जानकर उंगलियां दबानी पड़ीं कि आपकी मेहरबानी से उज्जैन जिले को रविवार रात्रि 776 रेमडेसीविर इंजेक्शन मिले हैं! 

इनफार्मेशन की बजाय पब्लिसिटी लेने के लिए जब इस अधिकृत प्रेस विज्ञप्ति को समाचार में लिया, तो मेरा पूरा शरीर पानी-पानी हो गया, “कोरोना संक्रमण के उपचार के लिए आवश्यक रेमडेसीविर इंजेक्शन की किल्लत झेल रहे  उज्जैन जिले को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने राहत प्रदान करते हुए एक ही दिन में एक साथ 776  रेमडेसीविर इंजेक्शन उपलब्ध करवाएं हैं.”

मैं समझ नहीं पा रहा कि रेमडेसीविर इंजेक्शन के जो 125 बक्से रविवार दोपहर 3 बजे इंदौर एअरपोर्ट पहुंच चुके थे और जिनमें से 14 बॉक्स उज्जैन को मिलने थे, वो यहां-यहां आते-आते (रात्रि करीब 11 बजे) 776 की संख्या तक क्यों सिकुड़ गए? शिवराजजी अब आप ही बताईये, हवाई मार्ग से मिली ये कैसी राहत है?

उज्जैन को केंद्र में रखकर मैं अपनी बात इसलिए कर रहा हूं ताकि सही और सटीक जानकारी बता सकूं. उज्जैन एक संभागीय मुख्यालय है और अस्पताल सुविधाओं के लिए शाजापुर, आगर-मालवा, राजगढ़ और उज्जैन जिले के साथ-ही देवास, रतलाम, मंदसौर, इंदौर आदि जिलों के मरीज यहां काफी बड़ी संख्या में रोजाना आते हैं.

रविवार-सोमवार की दरम्यानी रात जो आधिकारिक जानकारी थी, उसके अनुसार अभी कुल 2679 सक्रिय कोरोना मरीज उज्जैन शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती हैं और उनमें से 1577 मरीज तो खालिस कोरोना के स्पष्ट लक्षणों वाले हैं. 

अब अगर मैं कहूं कि मुख्यमंत्री जी ने “ऊंट के मुंह में जीरा” समान राहत दी है, तो उनके कथित सिपहसालारों को लाल-पीला होने की जरूरत नहीं! रामबाण बताये जा रहे तथाकथित रेमडेसीविर इंजेक्शन को लेकर पब्लिक डोमेन में जो प्रमाण आ चुके हैं, उसकी चर्चा छेड़कर मैं कोई नया विवाद खड़ा नहीं करना चाहता, मगर बकौल मुख्यमंत्री मौजूदा कोरोना-काल “अति-विकट” और “अकल्पनीय” है, तक ही अपनी बात को विराम देना चाहता हूं!

…मैं उनसे विनम्रता से कहना चाहता हूं कि इस भीषण, घनघोर और भूतो-न-भविष्यति वाले काल से निपटने के लिए राज्य के कोई 8 करोड़ लोगों को कतिपय जिम्मेदार लोगों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता…

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लेखक उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। विगत तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। संप्रति – ब्यूरो प्रमुख, फ्री प्रेस जर्नल, उज्जैन

(उक्त लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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