उनके एजेंडा, प्रोपगंडा या प्रचार की प्रतिध्वनि न बनें
एक ने कहा गधा, आपने कहा गधा नहीं है, गधा इस तरह का नहीं होता, गधे के सिर पर सींग नहीं होते।
दूसरे ने कहा गधा, आपने जवाब दिया नहीं ये सींग वाला जानवर गधा नहीं है, इसके पैर भी गधे जैसे नहीं है, ये गधा नहीं हो सकता।
अब तीसरे ने कहा गधा। आपने फिर जवाब दिया गधा कैसे हो सकता है, गधा ऐसा भूरा या काला थोड़े होता है। गधे के कान ऐसे थोड़े होते हैं। ये गधा नहीं गाय है।
इस तरह उन्होंने तीन बार गधा बोला, आपने जवाब में सफाई देते हुए जो लंबा चौड़ा ज्ञान दिया, उसमें 10 बार गधे का ज़िक्र आया।
इस तरह चाहे विरोध में ही सही, आपने 10 बार गधे का नाम लिया।
अब संचार का सिद्धांत कहता है कि जो लफ्ज़ बार-बार दोहराया जाए, वो दिमाग़ में जगह कर जाता है। इसके बाद आप, सोते, जागते वह शब्द अपने साथ लेकर घूमते हैं।
वाशिंग पाउडर निरमा का विज्ञापन याद कीजिए। उसकी हर पंक्ति में निरमा शब्द इसीलिए है ताकि वो दिमाग़ में पैबस्त हो जाए। आप जब वाशिंग पाउडर लेने जाएं, तो मन में सबसे पहला नाम निरमा हो। सब कॉन्शियस या अवचेतन में वहीं शब्द अपनी याद आपको दिलाता रहेगा।
अब आप गधे या निरमा की जगह वे नाम रखिए या यूं बातें दोहराइए, जो आप विरोध में या सफाई देने के लिए बार-बार लेते हैं!
कुछ याद आया?
आपका विरोध ही उनकी शक्ति है, और आपका बार बार उनके एजेंडे को दोहराना उनका मुफ्त प्रचार है।
तो बंधु उनके एजेंडा का हिस्सा बिल्कुल मत बनिए।
वो हिन्दू मुस्लिम करें, इग्नोर कीजिए, वो आपको उकसाएं, अनदेखी कीजिए, वो भाषण दें, आप उनकी कोई बात या नाम अपने मुंह से न दोहराएं।
कुएं में चीखने दीजिए और उन आवाजों को उसी कुएं में घुट कर मर जाने दीजिए।
उनके एजेंडा, प्रोपगंडा या प्रचार की प्रतिध्वनि मत बनिए।
ज़ैग़म मुर्तजा
पत्रकार व लेखक
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लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक