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Books: अदृश्य: एक फिल्म का साहित्य में बदल जाना

‘अदृश्य’ फिल्म के पटकथा-संवाद लेखक विवेक अग्रवाल एवं अलका अग्रवाल सिग्तिया ने एक अनूठा प्रयोग साहित्य तथा फिल्म संसार में कर दिखाया है। लेखक जोड़ी ने एक निराले विषय पर संदीप चटर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म अदृश्य को उपन्यास की शक्ल दी है। आज तक फिल्म जगत में यही होता आया है कि साहित्यिक कृतियों से फिल्में बनती आई हैं, पहली बार एक फिल्म ने उपन्यास का रूप धरा है। उपन्यास अदृश्य का विमोचन हो रहा है 29 जुलाई को, फिल्म रुपहले पर्दे पर आ रही है 3 अगस्त को।

अलका अग्रवाल सिग्तिया और विवेक अग्रवाल रचित उपन्यास “अदृश्य” के लोकार्पण में विशिष्ट अतिथी पद्मश्री सोमा घोष, अभिनेता राजेंद्र गुप्ता, रचनाकार सूर्यबाला, पटकथा लेखक कमलेश पांडे, रंगकर्मी अतुल तिवारी हैं। पटकथा लेखिका अचला नागर, समाजसेवी वीरेंद्र याज्ञनिक, लेखिका मंजू लोढ़ा, पत्रकार अभिलाष अवस्थी की प्रमुख उपस्थिति है। केके पब्लिकेशंस, दिल्ली के मालिकान कमल सचदेवा – देविंदर कुमार विशेष रूप से आयोजन में शामिल होने के लिए आ रहे हैं।

पुस्तक की समीक्षा मशहूर लेखक-पत्रकार हरी मृदुल कर रहे हैं। इस अवसर के लिए विशेष सहयोग अजंता पार्टी हॉल के बृजमोहन अग्रवाल का है। संपूर्ण आयोजन में विशिष्ट सहयोग फिल्म के निर्देशक-निर्माता संदीप चटर्जी, दो अन्य फिल्म निर्माता सतीश पुजारी व दीपक शाह हैं। फिल्म के सभी सितारे और गीत गायक भी इस मौके पर विशेष रूप से पधार रहे हैं। विमोचन समारोह का संचालन देश के मशहूर पत्रकार-लेखक दीपक पचौरी कर रहे हैं।

29 जुलाई 2018, रविवार की दोपहर 2.45 बजे विमोचन कार्यक्रम अजंता हॉल, बाटा शोरूम के ऊपर, एसवी रोड, गोरेगांव (प), मुंबई में संपन्न होगा।

उपन्यास की लेखिका अलका अग्रवाल सिग्तिया बताती हैं कि फिल्म निर्देशक संदीप चटर्जी ने एक दिन संपर्क कर बताया कि उनकी फिल्म इसलिए हमसे लिखवाना चाहते हैं क्योंकि निरा फिल्मी नहीं, परिवार और पात्रों की जीवंत भावनाएं उभारने की इच्छा है। उसमें साहित्यिक रंग भरना चाहते हैं। वे चाहते थे कि फिल्म के संवादों में न केवल संवेदनाएं पूरी तरह उभर कर सामने आएं बल्कि वर्तमान समाज की रवानी के साथ चले। यह हमने कर दिखाया क्योंकि फिल्म के तमाम दृश्यों को हम अंतस में महसूस कर पाते थे।

विवेक अग्रवाल कहते हैं, “पौराणिक आख्यानकों का राजकुमार ध्रुव, जैसे अपने पिता राजा उत्तानपाद के स्नेह व दुलार के लिए तरसता है, हमारी कथा का नायक ध्रुव भी माता-पिता का प्यार और अपनत्व पाने के लिए तरसता है। यह कहानी है ध्रुव-तारा की। तारा क्यों? यह तो फिल्म देख कर या किताब पढ़ कर ही आपको पता चलेगा। रजतपटल पर साकार एक कृति को साहित्यिक रूप में ढालने का, ये अपने-आप में अनूठा और ऐतिहासिक प्रयोग है। हमारा विचार है कि फिल्म कुछ समय के लिए होती है लेकिन किताब सदा के लिए। इस कहानी में एक सार्वभौमिक व शाश्वत समस्या को उठाया है। इस पर भाषण देने के बजाए ‘हॉरर’ और ‘मिस्ट्री’ की चाशनी में लपेट कर आकर्षक रूप में पेश करने की कोशिश है।”

फिल्म के निर्देशक संदीप चटर्जी कहते हैं, बॉलिवुड की तमाम चकाचौंध व आकर्षण के बावजूद कलात्मक अभिव्यक्ति से लबरेज फिल्म निर्देशकों का बिल्कुल अकाल नहीं है। मैं हिंदी फिल्मोद्योग को वह देना चाहता हूं, जो न केवल ध्यान आकर्षित करे बल्कि युगों तक प्रभाव छोड़ती रहे। ‘अदृश्य’ का निर्माता और निर्देशक होने के नाते यह मेरे लिए गर्व की अनुभूति भरती है कि हम अगस्त 2018 में इसे रजत पटल पर ला रहे हैं। ‘अदृश्य’ ने आलोचकों में खूब प्रशंसा हासिल की है। अब तक राष्ट्रीय और विश्वस्तरीय फिल्म फेस्टिवल्स में आठ पुरस्कारों के अलावा ढेरों सम्मान एवं प्रशस्तिपत्र प्राप्त कर चुकी है। अलका अग्रवाल सिग्तिया और विवेक अग्रवाल ने बेहतरीन संवाद लिखे और इसे साहित्यिक कृति के रूप में ढाला है। इससे भी मैं भी खासा रोमांचित हूं। ‘अदृश्य’ का उपन्यास के रूप में आना, फिल्मोद्योग के लिए एक नवाचार है, जिसका स्वागत होना ही चाहिए।”

 

 

 

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