कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 02: ब्रह्मास्त्र
यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक
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ब्रह्मास्त्र
“अरे, मेरे को बांधा क्यों?” ग्राहक की हरकत से बेला हतप्रभ है। अजीब ग्राहक है, खिड़की के सरिए से दोनों हाथ-पांव बांध दिए हैं। उसे पूरी तरह निर्वस्त्र करने के बाद ये अजीब हरकत कर रहा है। बेला को वो दिन याद आने लगे, जब उसे पहली बार कोठों की अंधेरी दुनिया में काल के कठोर हाथों ने ला कैद किया था। उसे बांध कर भूखा-प्यासा रखा जाता, कई-कई राक्षस उससे वहशियाना बलात्कार करते थे।
“सौ रुपए ज्यादा दूंगा, चुप रह…” ग्राहक ने बेला को लालच दिया।
“अरे पन तू करता क्या है?” बेला कसमसाई।
“दो सौ ज्यादा दूंगा…” ग्राहक ने लालच बढ़ाया।
“वो ठीक है पन…” बेला उलझन में है
“तीन सौ ऊपर लेना…” ग्राहक ने भाव बढ़ाया।
“अरे पन…” अब बेला की बेचैनी बढ़ गई।
“पांच सौ… बोल?” ग्राहक ने ब्रह्मास्त्र चलाया, बेला की चेतना जाती रही। वो खामोश हो गई। पूरे दिन की कमाई एक ग्राहक से मिल रही है, वो क्या पूरा कमाठीपुरा इस पर तो चुप लगा जाएगा।
इस अतिकामुक ग्राहक ने अब बेला की चुप्पी और गाढ़ी करने के लिए मुंह में एक कपड़ा भी ठूंस दिया। अब ग्राहक ने पतलून का बेल्ट निकाल कर बेला को खूब मारा। हर वार पर बेला तिलमिला उठती। दर्द शरीर के हर हिस्से में करंट की तरह दौड़ता। ग्राहक हर वार के बाद इसके जिस्म से कुछ देर के लिए चिपटता, उसके जिस्म की थरथराहट का आनंद लेता। जब जिस्म का कंपन बंद हो जाता, तो अलग होकर बेल्ट चला देता। ये क्रम तब तक चलता रहा, जब तक वो स्खलित नहीं हो गया। बेला ने सब सहा क्योंकि उसे पैसा कमाना है, खूब सारा पैसा; उसे आगे बढ़ना है, खूब आगे।
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