मुं‘भाई’ रिटर्न्स पुस्तक में खुल रहे हैं माफिया के तमाम राज
मुंबई माफिया पर पहली पुस्तक याने इस किताब का पहला खंड मुं‘भाई’, में मुंबई माफिया के बारे में यह बताने और जताने का प्रयास है कि वह कितना खतरनाक, दुरूह, कठिन और अजाना है। मुं‘भाई’ में आतंकफरोशों के ढेरों राज फाश किए हैं। इसका दूसरा खंड मुं‘भाई’ रिटर्न्स भी साथ ही आ रहा है।
खबरों के आगे बढ़ कर तैयार कुछ ऐसी सामग्री परोसने की जिद ने मुं‘भाई’ रिटर्न्स भी साथ ही तैयार करवाया। तीसरे खंड की तैयारी है। वह भी चंद दिनों में आप तक पहुंचाने का प्रयास होगा। आपके संग्रह के लिए कितनी उपयोगी साबित होगी, आप ही बेहतर बता सकेंगे।
इन रक्तजीवी प्रेतों के कुछ और अछूते रहस्यों तक पहुंचने की जद्दोजहद में गुंडों के उन छद्म नामों की कहानियां गुंडों की नाम कहानी विषय में सहेजी हैं, जिनसे वे पहचाने जाते हैं। परिवार के दिए नाम अमूमन ऐसे ओझल होते हैं कि किसी को याद ही नहीं रहते।
मुं‘भाई’ रिटर्न्स में आपको मिलेगी ऐसी महिलाओं और बारबालाओं के किस्से, जिन्होंने भूमिगत संसार को अपनी खूबसूरती, चालाकी व क्रूरता से बदल कर रख दिया। इनमें से कुछ देहजीवाएं थीं, कुछ पारिवारिक। किसी न किसी कारण इस खेल का वे भी हिस्सा बन चलीं।
मुं‘भाई’ रिटर्न्स में छोटा राजन के देशभक्ति के शंखनाद के साथ बमकांड आरोपियों को गोलियों से उड़ाने के किस्से हैं, तो दाऊद इब्राहिम – छोटा शकील द्वारा शिवसेना नेताओं को चुन-चुन कर रक्तस्नान करवाने के दिल दहलाते किस्से भी हैं।
मुं‘भाई’ रिटर्न्स में गिरोहों के हथियारों की खरीद-फरोख्त, तस्करी से उनके इस्तेमाल तक की पूरी जानकारियां हैं, तो कैसी-कैसी अत्याधुनिक तकनीक और उपकरण वे उपयोग में लाते हैं, उसकी भी तफसील है।
पुलिस मुठभेड़ों ने कैसे रक्तपिपासु प्रेतों के तांडव पर रोक लगाई, कैसे मुठभेड़ों ने पुलिस का इतिहास ही बदल दिया, सब कुछ समेटा है मुठभेड़ों का सच विषय के तहत। टाडा जैसे सख्त कानून के चलते माफिया की कैसे कमर टूटी, उसकी आंकड़ों समेत तफसील भी एक हिस्से में है। कैसे ये गुंडे और अपराधी पुलिस की समझ में न आने वाली कूट भाषा गढ़ते हैं, उसका पूरा सिलसिला है। और हां, यह सब समझने के लिए गिरोहबाजों, प्यादों, खबरियों में प्रचलित शब्दों व मुहावरों का पूरा जखीरा अंत में है ही।
लेखक – विवेक अग्रवाल
प्रकाशक – वाणी प्रकाशन