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महान संत गुरू नानक देव जी महाराज के जन्म दिवस पर करतारपुर मार्ग खोलना सद्भावनापूर्ण कार्य है

वैसे तो पूरा पाकिस्तान ही महान संत गुरू नानक देव जी महाराज सहित अन्य सभी सिख गुरुओं की कर्मस्थली रही है परन्तु सिख मान्यताओं के अनुसार करतारपुर साहिब का विशिष्ट स्थान है। करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जिसे मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है, सिखों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है,जहां गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए।

इस स्थान पर गुरु नानक जी ने 16 सालों तक अपना जीवन व्यतीत किया।बाद में इसी गुरुद्वारे की जगह पर गुरु नानक देव जी ने अपना देह 22 सितंबर 1539 को छोड़ा था,जिसके बाद गुरुद्वारा दरबार साहिब बनवाया गया।

पाकिस्तान के नारोवाल जिले में बसा करतारपुर पाकिस्तान स्थित पंजाब में आता है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है। जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली। यह गुरुद्वारा रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है।

यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। श्राइन भारत की तरफ से साफ नजर आती है। मान्यता के अनुसार जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह कुछ फूल रह गए। इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई। वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई।

गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था। यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब नाम दिया गया,जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।

1,35,600 रुपए की लागत से तैयार इस गुरुद्वारे की रकम को पटियाल के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया था।बाद में साल 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी। साल 2004 में यह काम पूरा हो सका। इसके करीब स्थित रावी नदी हालांकि इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है।

साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीय समिति ने कहा कि आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है।

यह कारीडोर नवम्बर 2019 में बन कर जब भारत के श्रद्धालुओं के लिए खुला था तो ऐसा लगा था कि पंजाब समेत पूरे देश के केशधारी व मौने सिखों पर गुरू की महान कृपा बरसी है। सिख मत में विश्वास रखने वाले सभी श्रद्धालु गुरू नानक देव जी अन्तिम कर्मभूमि के समक्ष मत्था टेक कर स्वयं को धन्य बना सकते हैं। इस मामले में पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने भी पूरी सदाशयता दिखाई थी और कारीडोर के अपने हिस्से के निर्माण में तेजी दिखाई थी।

पिछले वर्ष कोरोना महामारी के चलते इसके रास्ते को बंद कर दिया गया था, जो आज तक बंद था। अभी कोरोना काल लगभग निपट जाने पर केन्द्र की मोदी सरकार के गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने इसे लगभग डेढ वर्ष बाद खोल कर पुनः पंजाबियों की प्रशंसा बटोरी है।

इसे खोलने की मांग काफी अर्से से हो रही थी और खुद पाकिस्तान की तरफ से भी इसे खोलने की इच्छा जताई गई थी , मगर गुरू परब के अवसर पर इसे चालू करने की घोषणा करके श्री शाह ने सिख गुरुओं के प्रेम व भाइचारे के उपदेश का पालन किया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच बने ‘करतार पुर साहिब कारीडोर’ को पुनः प्रारम्भ करके केन्द्रीय गृहमन्त्रालय ने जो सद्भावनापूर्ण कार्य किया है उसका प्रत्युत्तर भी पाकिस्तान की तरफ इसी रूप में आना चाहिए और दोनों देशों के बीच फैली महान सिख गुरुओं की विरासत को शिरोधार्य किया जाना चाहिए।

यह स्थान भारत-पाक सीमा से बहुत दूर भी नहीं है, इसके बावजूद 1947 में देश का बंटवारा हो जाने पर इसके पाकिस्तान में चले जाने पर पंजाब के लोगों को खासी मायूसी हुई थी। स्वयं में यह भी कम हैरतंगेज नहीं है कि इस कारीडोर का निर्माण बंटवारे के सात दशक बीत जाने के बाद किया गया जबकि हकीकत यह है कि भारत के लोग इस पवित्र गुरूद्वारे के दर्शन भर करने के लिए इससे पहले भारत की सीमा के पास आकर एकत्र हो जाया करते थे।

यह भी स्वयं में कम महत्व निर्माण नहीं है कि इसका उद्घाटन 9 नवम्बर, 2019 के दिन हुआ क्योंकि यह दिन दोनों जर्मनियों के बीच बनी ‘बर्लिन दीवार’ को ढहाने का वार्षिक जयन्ती दिन होता है। बेशक यह सांकेतिक ही हो मगर इससे इतना तो आभास होता है कि 14 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत का जो बंटवारा अंग्रेजों के साथ साजिश करके किया था वह पानी पर खींची हुई लकीर की तरह ही था क्योंकि दोनों देशों की मूल संस्कृति में कोई अन्तर नहीं है।

गुरू नानक देव जी की वाणी और गुरू ग्रन्थ साहब के शबद जब दरबार साहिब करातारपुर से गूंजते हैं उनकी ध्वनि पाकिस्तान में भी जाती है जिनमें भाईचारे और प्रेम व सद्भाव का सन्देश होता है। इसी गुरू नानक की वाणी में यह सन्देश सर्वोच्च है कि धर्म अलग होने से मनुष्य में प्यार व आत्मीयता समाप्त नहीं होती है। नानक देव जी की यह वाणी आज भी भारत और पाकिस्तान के गुरुद्वारे से गूंजती हुई हमें आपसी एकता का सन्देश देती है।

पाकिस्तान में ननकाना साहिब भी है और हिन्दुओं के विभिन्न तीरथ स्थल व मन्दिर भी हैं। इनमें बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी का मन्दिर भी। इस मन्दिर पर आज भी हर वर्ष नवरात्रों के समय मेला लगता है जिसमें भाग लेने इस प्रदेश के मुसलमान नागरिक भी जाते हैं और इसे ‘दादी की हज’ की संज्ञा देते हैं।

इसी प्रकार भारत में भी मुस्लिम नागरिकों की पूज्य बहुत सी पीर-फकीरों की मजारें हैं जिनकी जियारत करने को पाकिस्तान के नागरिक लालयित रहते हैं। इनमें सबसे प्रमुख अजमेर शरीफ है। इसी तरह शिया मुस्लिमों का पवित्र स्थल उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में नजीबाबाद कस्बे के निकट ‘जोगी रमपुरी’ में हैं जिसमें भाग लेने के लिए हर वर्ष देश-विदेश से हजारों की संख्या में जायरीन आते हैं। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि दोनों देशों में फैले इन तीर्थ स्थलों के माध्यम से ही भारत-पाकिस्तान के बीच कशीदगी दूर करने का जरिया निकाला जा सकता है। बशर्ते इस्लामाबाद में बैठे पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी अवाम की भलाई के बारे में सोचें और आतंकवाद और मजहबी तास्सुब को छोड़ कर इंसानियत के फर्ज को निभायें। यह कार्य मगर किसी हुक्मरान के फौरी हुक्मों से नहीं हो सकता बल्कि सच्ची नीयत के साथ दीर्घकालीन दोस्ती के नुक्ता-ए-नजर से हो सकता है। करततारपुर साहिब कारीडोर ने तो बस रास्ता दिखाया है।

लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विगत चार दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।

अ-001 वैंचर अपार्टमेंट, वसंत नगरी, वसई पूर्व -401208 (जिला – पालघर), फोन / वाट्सएप +919221232130

(उक्त लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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Ashok Bhatia, Journalist, Writer, Mumbai, India, अशोक भाटिया, पत्रकार, लेखक, मुंबई, भारत,

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