मोदी को पहली बार धीरे से जोर का झटका
पूरी दुनिया ने टीवी पर देखा कि गणतंत्र दिवस की दोपहर दिल्ली में लाल किले पर एक अभिनेता दीप सिद्धू ने हंगामे के साथ निशान साहब का झंडा फहराया, कुछ लोगों ने लाल किले के सामने खड़े होकर शमशीर लहराई, एक बस खड़ी कर उस पर ट्रैक्टरों से टक्कर मारी गई और इस घटनाक्रम के फुटेज के आधार पर टीवी प्रचार के जरिए किसान आंदोलन को बदनाम करने का महती प्रयास किया गया। सिखों को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास हुआ। इस घटना के बहाने किसान नेताओं पर कानूनी शिकंजा कसने की तैयारी हुई। कई एफआईआर लिखी गई। आंदोलन कर रहे किसानों को हटाने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस तैनात की गई।
गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत मौजूद थे और पुलिस के सामने उनका समर्पण लगभग तय था, लेकिन उसी दौरान हजारों पुलिस जवानों के बीच कुछ लोग तिरंगा झंडा लिए धरनास्थल पर पहुंचे और नारे लगाने लगे – दिल्ली पुलिस लठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं। यह नारा सुनकर राकेश टिकैत रो पड़े और उन्होंने समर्पण करने से इनकार करते हुए कहा कि ज्यादा ज्यादती होगी तो मरने के लिए तैयार। टिकैत के समर्पण की खबरें दिखाने के लिए मौके पर पहुंचे गोदी मीडिया के रिपोर्टरों को झक मारकर टिकैत का भावुक बयान दिखाना पड़ा। उसके बाद तस्वीर पलट गई।
अब तक यह आंदोलन गैर राजनीतिक था और भाजपा का तंत्र उसे पंजाब के सिखों तक समेट देना चाहता था। इसके लिए शायद पंजाबी फिल्म अभिनेता दीप सिद्धू की सेवाएं ली गई थीं, जो यह सब करके बहुत ही आसानी से फरार हो गया। वह फेसबुक पर सक्रिय है और मुंबई पहुंच गया बताया जाता है। सनी देओल से उसके घनिष्ठ संबंध हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, सनी देओल आदि के साथ उसके फोटो वायरल हो रहे हैं, जो उसके भाजपा से जुड़े होने का साफ संकेत देते हैं। सरकार ने अब तक यह नहीं बताया कि वह दीप सिद्धू के खिलाफ क्या कार्रवाई कर रही है, जबकि किसान नेताओं को इस प्रायोजित हंगामे में लपेटने के लिए दिल्ली पुलिस का पूरा छल बल लग रहा है।
निशान साहब का झंडा लगाने का सीन क्रिएट करने के लिए लालकिले का बड़ा दरवाजा खोल दिया गया था, जो अक्सर बंद ही रहता है। करीब एक हजार लोग आराम से किले में प्रवेश कर गए। हंगामा किया, तलवारें लहराई और वापस भी चले गए। इतना सबकुछ होने के बाद भी लोगों की सहानुभूति आंदोलन कर रहे किसानों के साथ बनी हुई है। यह इससे मालूम पड़ता है कि बड़ी संख्या में लोग गाजीपुर बॉर्डर पर जुट रहे हैं। सभी विपक्षी पार्टियां किसान आंदोलन के पक्ष में हो गई है। इस आंदोलन को अब सिर्फ सिखों का आंदोलन कहते हुए बदनाम करने का अवसर समाप्त हो चुका है। यह गनीमत है कि किसान शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं। अगर उनकी तरफ से इसी तरह की प्रतिक्रिया होने लगे तो देश की क्या हालत होगी?
राकेश टिकैत को डरा धमकाकर जबरन पकड़ने के इरादे से पहुंची पुलिस लौट गई है। सरकार को आंदोलन स्थल पर बिजली, पानी की सप्लाई बहाल करनी पड़ी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि किसानों को आंदोलन करने से नहीं रोका जा सकता। लाल किला प्रकरण के बाद अब यह जन आंदोलन बन चुका है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ओज और तेज को खत्म करने का सबब बनने वाला है। मोदी की कानून वापस नहीं लेने की जिद को टिकाए रखने के लिए सोशल मीडिया पर भाजपा के आईटी सेल की पूरी फौज जुटी हुई है, लेकिन किसानों का समर्थन करने वाले भी कम नहीं हैं। पूरा देश दो भागों में बंट रहा है। एक तरफ मोदी के समर्थक हैं, दूसरी तरफ मोदी के विरोधी।
संकट में अवसर खोज लेने वाले मोदी किसान आंदोलन से बनी परिस्थितियों का उपयोग भी मनमर्जी के मुताबिक बजट पारित करवाने में कर लेंगे। लोग किसान आंदोलन में उलझे रहेंगे और केंद्रीय बजट पारित हो जाएगा। कोई मीन-मेख नहीं निकालेगा। मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल, असम सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। उन पर भी किसान आंदोलन का असर पड़ेगा। मोदी अपनी सरकार चलाते रहेंगे। उनके विरोध में हंगामा चलता रहेगा और इस तरह देश की क्या हालत होगी, कोई नहीं जानता।
खबरें प्लांट हो रही हैं कि गांवों के लोग किसानों के खिलाफ हो गए हैं और उन्हें जगह खाली करन के लिए कह रहे हैं। इस क्रम में सिंघु बॉर्डर पर कुछ लोगों ने किसानों पर जमकर पथराव किया, जिससे कई किसान घायल हो गए। किसानों की तरफ से किसी पर हमला करने की कोई खबर नहीं है। लालकिले की बड़ी घटना के बाद पथराव की इन छिटपुट घटनाओं से किसानों के मनोबल पर कोई असर नहीं पड़ा है। किसान आंदोलन अपनी जगह पर कायम है। मोदी को प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार धीरे से जोर का झटका लगा है। उनके शासन काल का वर्तमान इतिहास में दर्ज होने की तैयारी में है। किसानों के आंदोलन से उन लोगों का भी उत्साह बढ़ रहा है जो हर तरह की मनमानी को मन मसोसते हुए चुपचाप देख रहे थे। गोदी मीडिया को भी पता चल रहा है कि उसके कुत्सित प्रचार अभियान में कितना दम है।