अवैध शराब काराबारियों की दिल दहलाने वाली घटनाएँ कब रुकेगी?
अशोक भाटिया
उत्तर प्रदेश के कासगंज में पुलिसकर्मियों पर हाल में फिर बिकरू काण्ड जैसा हमला हुआ। पुलिस वहां के गांव में अवैध शराब का कारोबार बंद कराने गयी थी लेकिन यह सर्वविदित है कि ऐसे कारोबारों से सरकारी सीढ़ियों तक कैसे चढ़ावा चढ़ता है। परिणामस्वरूप माफ़िया को पुलिस के आने की ख़बर पहले ही हो गयी। शराब माफ़ियाओं ने पहुंचने पर पुलिस को घेर लिया और दारोगा, अशोक व सिपाही, देवेंद्र को बंधक बना लिया। मौका मिलते ही सम्पर्क किया, अतिरिक्त पुलिस बल की मदद ली गयी।
कोंम्बिंग के दौरान सिपाही अर्धनग्न अवस्था में मृत मिले। उनकी हत्या हुई थी। दारोगा खेत में लहूलुहान पड़े मिले। इस मामले में योगी सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए रासुका लगा दी। आरोपियों की तलाश जारी है।
बिकरू काण्ड के बाद योगी सरकार ने जिस तरह काम किया उससे राज्य के माफ़ियाओं में दहशत का माहौल बन गया था, जिसके बाद एक वर्ष के भीतर ही दिल दहलाने वाली यह एक ओर भयावह घटना है।
एक छोटी टीम के साथ किसी ऑपरेशन पर निकलना पुलिस के लिए जोखिम भरा हो चुका है। शहर के बीचों-बीच गुंडे आतंकवादियों की तरह वर्दीधारियों पर हमले कर रहे हैं। यह सब इतना सहज होना ख़तरनाक है, वह भी तब जब उन्हें पता है कि हश्र क्या हो सकता है।
बिकरू गोलीकांड में भी माफिया विकास दूबे और पुलिस अफसरों की सांठगांठ भी उजागार हो चुकी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपराध और अपराधियों के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाई है, जिसके चलते बहुत सारे अपराधी मारे जा चुके हैं या फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया है। कई अपराधियों ने खौफ के चलते आत्मसमर्पण भी किया है।
ऐसी आपराधिक घटनाएं केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी होती हैं। देश में अनेक तरह के माफिया सक्रिय हैं। शराब माफिया के अलावा अवैध खनन माफिया, रेत माफिया, कोल माफिया, भू माफिया, ड्रग्स माफिया। ये माफिया इतने क्रूर हैं कि इनके सामने इंसानी जिन्दगी की कोई कीमत नहीं।
अवैध खनन माफिया तो पुलिसकर्मियों की हत्या के लिए कुख्यात है। कोयला माफिया कोयले की चोरी और श्रमिकों के शोषण के लिए कुख्यात है।
अपराध की दुनिया में सभी माफियाओं के लम्बे-चौड़े रिकार्ड हैं। यह जगजाहिर की स्थिति है कि स्थानीय स्तर पर उभरे अपराधियों को किसी न किसी राजनीतिक दल का समर्थन प्राप्त होता है, फिर अपराध की दुनिया में कद बढ़ने के बाद वह अलग-अलग पार्टियों में प्रभावशाली पदों पर बैठे नेताओं तक अपनी पैठ बना लेता है। राजनीतिक संरक्षण के बाद उसे पुलिस में शामिल काली भेड़ों का संरक्षण मिल जाता है। फिर वह अपराध की दुनिया में अपने पांव फैलाता है। उसके सम्पर्क बड़े माफियाओं से होते हैं, जिनके इशारे पर वह काम करने लगता है। अपनी ऊंची पैठ के चलते आजाद घूमता रहता है।
उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब से लोगों की मौतों की खबरें आती रहती हैं। ऐसा तो माना नहीं जा सकता कि इलाके के पुलिस प्रभारी को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि कौन से इलाके में अवैध शराब का धंधा होता है और कौन-कौन उसमें लिप्त है।
सवाल यह भी है कि इलाके की पुलिस अपराध होने के बाद ही सक्रिय क्यों होती है? गम्भीर प्रकृति के अपराधों में लिप्त लोग खुले क्यों घूमते रहते हैं?
इस अघोषित संरक्षण से बढ़े हौंसले की वजह से जब किसी पुलिसकर्मी की जान ले ली जाती है तो पुलिस अतिसक्रिय हो जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपराधमुक्त उत्तरप्रदेश के संकल्प में ईमानदारी है लेकिन पुलिस प्रशासन में छिपे चंद लोग ईमान बेच दें तो संकल्प धूल धूसरित होगा ही। जब उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस प्रशासन को अपराधियों से निपटने में फ्री हैंड दे रखा है तो पुलिस को भी कानून और संस्थान की गरिमा को बनाए रखने का अपना प्राथमिक दायित्व तो समझना ही चाहिए।
शहीद सिपाही के परिवार के लिये मुआवज़े और नौकरी की घोषणाएं हो गयी हैं लेकिन ब्रह्माण्ड की कोई भी क़ीमत इतनी बड़ी कहां हो सकी है, जो रुकी हुई सांसों में जान डाल दे।
ज़रूरी है कि ऐसे माफ़ियाओं पर कठोरतम तरीके से नकेल कसी जाए। दिल दहलाने वाली इस घटना ने नींद उड़ा दी है। इसमें कोई शक नहीं कि उन गुंडों के लिए मुखबिरी करने वाला भी कोई ख़ास ही होगा। पैसे की ख़ातिर ज़मीर बेचना जब तक आसान रहेगा, ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा लहूलुहान होती रहेगी।
आखिर अवैध शराब काराबारियों की जा रही दिल दहलाने वाली घटनाएँ कब रुकेगी?
लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विगत चार दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
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