हिंदू धर्म बनाम धार्मिक आस्था का व्यापार
राजस्थान के दो ब्राह्मण एक धर्मशाला में ठहरे। एक ब्राह्मण संपन्न था। उसने अलग कक्ष बुक करवाया। दूसरा संपन्न नहीं था, उसने बरामदे में आसन जमाया।
कुछ देर बाद दोनों मिले। एक-दूसरे का हाल-चाल पूछने लगे।
संपन्न ने विपन्न से पूछा, “क्या करते हो?”
विपन्न ने कहा, “गांव में देवी का मंदिर संभालता हूं। गुजारे लायक चढ़ावा मिल जाता है। और आप क्या करते हैं? ”
संपन्न ने जवाब दिया, “मैं हनुमानजी का मंदिर संभालता हूं। बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। मंगलवार और शनिवार को अच्छा खासा चढ़ावा मिल जाता है। बड़ी मौज है। बेटा इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा है। बेटी डॉक्टरी पढ़ रही है।”
संपन्न का जवाब सुन कर विपन्न थोड़ा मायूस हो गया। उसने कहा, “अपना भाग्य ऐसा कहां?”
संपन्न ने कहा, “देवी का मंदिर गलत बनवाया। वहां दो नवरात्रियों के अलावा और क्या चढ़ावा मिलता होगा।” इसके बाद उसने सलाह दी, “कोई अच्छी जगह देखकर तुम भी हनुमानजी का मंदिर बनवा लो। दिन फिर जाएंगे। शनि मंदिर भी बनवा सकता हो। आजकल शनि महाराज का मार्केट भी जबर्दस्त है।”
विपन्न ब्राह्मण ने कहा, “बात तो तुम्हारी ठीक है।”
इसके बाद वह सलाह पर विचार करने लगा।
इस प्रसंग से ज्ञान मिलता है कि यह भारत में हिंदू धर्म की स्थिति है। यह धर्म ब्राह्मणों के जीविकोपार्जन का साधन है। लोगों की धार्मिक आस्था का व्यापार है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं।
FB post of Rishikesh Rajoria On 2020, April 8 at 1:26 PM
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