नहीं मिले तो नहीं मिले, मिले तो अदबदाकर मिले – फ़िराक़ गोरखपुरी
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी
मरहूम शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने एक गपशप में बताया था कि मुंबई के रंग भवन में आयोजित एक मुशायरे में जब फ़िराक़ साहब ने यह शेर पढ़ा तो सामने बैठे श्रोताओं ने ठहाका लगाया और सारे लोग हंसने लगे। फ़िराक़ साहब ने श्रोताओं को डांटा तो सन्नाटा छा गया। इसके बाद फ़िराक़ साहब ने दस मिनट तक भाषण दिया कि शायरी सुनने के लिए सलीक़ा और शऊर क्या होता है।
दरअसल देखने में यह एक सीधा-सादा शेर लगता है जिसमें कहा गया है कि रात, नींद और कहानी अच्छी चीजें है मगर जवानी इससे भी सुंदर चीज़ है। एक अच्छी शायरी आइसबर्ग की तरह होती है। यानी एक चौथाई दिखाई पड़ती है और तीन चौथाई छुपी रहती है। अच्छे शेर के साथ भी कुछ ऐसा ही है होता है।
शेर से ध्वनित हो रहे अर्थ को आप पकड़ने की कोशिश करेंगे तभी लुत्फ़ आएगा। रात का गुण है रहस्यमय होना। नींद आती है तभी मीठे ख्व़ाब आते हैं। कहानी में मोड़, उतार-चढ़ाव और घुमाव होते हैं जो श्रोताओं को अपने मोहपाश में बांध लेते हैं। रात के रहस्य, सपनों की मिठास और कहानी के उतार-चढ़ाव को शामिल कीजिए तो जवानी की मोहक तस्वीर बनती है। इसलिए फ़िराक़ साहब ने कहा है, “हाय, क्या चीज़ है जवानी भी”। यानी जवानी इन तीनों से कहीं ज़्यादा दिलकश है। सिर्फ़ एक लफ़्ज़ ‘हाय’ में जवानी की जो तारीफ़ की गई है वह बेमिसाल है।
कई जगह फ़िराक़ साहब एक ही शब्द से बहुत बड़ा काम लेते हैं। उनका एक शेर देखिए:
अब तक तो जी रहा था किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर
इस शेर की ख़ूबसूरती बस एक शब्द ‘ख़ैर’ पर टिकी हुई है। आप भी इस कशिश को महसूस करने की कोशिश करेंगे तो आपको भी लुत्फ़ आएगा।
फ़िराक़ साहब जानबूझकर कभी-कभी ऐसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल कर देते थे कि सुनने वाले हैरान-परेशान हो जाते थे। एक बार उन्होंने एक शेर कह दिया जो कुछ इस तरह का था:
नहीं मिले तो नहीं मिले
मिले तो अदबदाकर मिले
कई लोगों ने ऐतराज़ किया मगर फ़िराक़ साहब ‘अदबदाकर’ बदलने को तैयार नहीं हुए।
इसी तरह एक बार एक मुशायरे में उन्होंने सुनाया:
ऐ याद-ए-यार तुझसे सर-ए-राह-ए-ज़िंदगी
अक्सर मिला हूँ और बगलिया गया हूँ मैं
‘बगलिया गया’ सुन कर कई लोग जलभुन गए, मगर फ़िराक़ साहब इसे भी बदलने को तैयार नहीं हुए।
एक बार फ़िराक़ साहब मुम्बई तशरीफ़ लाए तो उन्हें देखने के लिए कई हज़ार लोग इकट्ठे हो गए।
उनका स्वागत कर रहे उस समय के सबसे बड़े समालोचक ज़ोय अंसारी ने श्रोताओं को ललकारते हुए कहा, “हमअसरो! फ़िराक़ साहब को आँख भर कर देख लो ताकि आने वाली नस्लों को ये बता सको कि तुमने फ़िराक़ साहब को देखा है।”
इसी के बाद फ़िराक़ साहब ने अपना बहुचर्चित शेर कहा:
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हमअसरो
जब ये ध्यान आएगा उनको तुमने फ़िराक़ को देखा है
फ़िराक़ साहब अपने दौर के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे शायर थे फिर भी उन्होंने आसान भाषा में कई ऐसे शेर कहे जो आज भी लोगों की ज़बान पर हैं:
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ साहब के बारे में उर्दू के मशहूर समालोचक पद्मश्री कालिदास गुप्ता रिज़ा ने कहा था कि वह बीसवीं सदी के सबसे बड़े शायर हैं। फ़िराक़ साहब ने उर्दू की रिवायती शायरी के शबे-विसाल को हिंदुस्तानी संस्कृति से जोड़कर उसे उदात्त स्वरूप प्रदान किया:
ज़रा विसाल के बाद आईना तो देख ऐ दोस्त!
तेरे जमाल की दोशीजगी निखर आई
साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए फ़िराक़ साहब को साहित्य के सर्वोच्च सम्मान “भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार” से नवाज़ा गया।
फ़िराक़ साहब का कहना था कि हिंदुस्तान में ग़ज़ल को आए हुए अरसा हो गया लेकिन इसमें हिंदुस्तान के खेत-खलिहान, पहाड़ और नदियां, राम और कृष्ण अब तक क्यों नहीं दिखाई देते।
उन्होंने ख़ुद इस कमी को दूर करने की कोशिश की। सूरदास का पद “मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेइहौं” आपने सुना होगा।
फ़िराक़ साहब की यह रुबाई देखिए:
आंगन में ठुनक रहा ज़िदयाया है
बालक तो हई चांद पर ललचाया है
दर्पण उसे देके कह रही है मां
देख, आईने में चांद उतर आया है
फ़िराक़ साहब की दो किताबें अगर मिल सकें तो ज़रूर पढ़िए, उनकी रुबाइयों का संग्रह ‘रूप’ और इनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘उर्दू की इश्क़िया शायरी’।
आए थे हंसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़‘
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
– देवमणि पांडेय
लेखक देश के विख्यात कवि एवं गीतकार हैं।
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